Monday, August 25, 2014

Raaste ka Pathar

ओ दुनिया, दुनिया वालों, ज़रा इधर भी देखो, मैं भी हूँ,
इस दहकते संसार में, इस जलते संग्राम में, मैं भी हूँ।

मुझे देख कर भी अनदेखा करके, तुम सब निकल जाते हो,
इस तेज़ रफ़्तार दुनिया के तुम आज़ाद परिंदे हो,
धुप सर्दी  बारिशों में रास्ते की धुल खाता
मैं जहाँ खड़ा हूँ, मैं सदा  वहीँ था, अब भी वहीँ पैर हूँ।

तुम सोचते हो आज क्या महफ़िल करेंगे,
कुछ और नहीं तो दीवारों के रंग बदल दूँ
पैसे के ढेर पर बैठ कर सोचना,
कल क्या क्या मुझे नया मिलेगा

मैं सोचता हूँ, क्या आज मुझे रोटी मिलेगी, या पानी मिलेगा
या  मुझे सर छुपाने, छप्पर मिलेगा
अपने नंगे पैरों के ज़ख्मों को रोज़
सोचता हूँ क्या आज मुझे कफ़न ही मिलेगा।

ओ दुनिया बनाने वाले,  तेरी इस दुनिया में मैंने क्या पाया है ,
सुख की चांदनी उनके लिए और दुःख की राते मेरे लिए
क्यों मुझसे नाराज़ है तू, क्यों मुझसे  रूठा है
अपनी आँखें खोल ज़रा और निचे देख संसार में
रास्ते का पत्थर बना , मैं भी हूँ , मैं भी हूँ।