Tuesday, August 26, 2014

Pyaas

सब कुछ मेरे पास है, फिर कैसा ये आभास है ,
कोई अमृत मुझ पर बरसा दे, मिट जाये तब ये प्यास है।

क्यों मेरा मन है व्याकुल, और चित्त है अशांत,
क्यों लगता हर पल जैसे कोई द्वन्द।
कब तक इसको बहलाऊँ, कब तक इसको समझाऊं,
क्यों ये रहता नहीं निर्भय और स्वछंद।

जो दिखता है मुझको , क्यों वो उन्देखा करते हो
जो सुनता है मुझको , क्यों वो सबको सुनता नहीं
इस तेज़ रफ़्तार संसार के शोर की मदहोशी में
भटक के खो न जाये मेरा मन कहीं।

वो डरा हुआ, सहमा हुआ, छुपा है मेरे मन में कहीं
कई बरस हुए उससे मिले, अब वो लगता है पराया।
पर आज मैं अपने अंतर्मन को  मिलवाऊँगी खुद से यहीं,
एक बार जो मिले, फिर होना अलग, वो ही तो है मेरा साया।

अब जब वो मेरे पास है, तब मुझको ये आभास है,
मिल कर आई मैं अपने स्वयं से, अब कहाँ मुझे कोई प्यास है।