Monday, October 5, 2009

यादें

ज़िन्दगी की दौड़ में कुछ देर रुक कर सोचती हूँ
कुछ होश नहीं कितनी दूर निकल आई मैं ,
आज भी आंखों में बसी हैं वो यादें नई जैसी , 
जैसे आज ही इस दुनिया में आई हूँ मैं।  

वो भाई बहनों का प्यार, पापा का दुलार,
वो छोटी सी बात पर लड़ना, और मम्मी की मार,
वो स्कूल में दोस्तों का गैंग, और परीक्षा की तलवार,
पीछे छोड़ आई मैं , और आ गई इस पार। 

मेरे सपने और मेरे अपने,
यादें जिनकी संभाली हैं चुन चुन के,
ऐसे ही बीती बातों को याद कर के,
आसूं गिरते है मल्हार बन के। 

जब साथ थे तब सोचा न था की ऐसे दिन भी आयेंगे , 
एक बार गले लग कर रोने को भी न मिल पाएंगे,
दूर इतने हुए तो जाना है मैंने,
इन सबके बिना आज जो हैं,  वो कहाँ कहलायेंगे।