Tuesday, August 26, 2014

Pyaas

सब कुछ मेरे पास है, फिर कैसा ये आभास है ,
कोई अमृत मुझ पर बरसा दे, मिट जाये तब ये प्यास है।

क्यों मेरा मन है व्याकुल, और चित्त है अशांत,
क्यों लगता हर पल जैसे कोई द्वन्द।
कब तक इसको बहलाऊँ, कब तक इसको समझाऊं,
क्यों ये रहता नहीं निर्भय और स्वछंद।

जो दिखता है मुझको , क्यों वो उन्देखा करते हो
जो सुनता है मुझको , क्यों वो सबको सुनता नहीं
इस तेज़ रफ़्तार संसार के शोर की मदहोशी में
भटक के खो न जाये मेरा मन कहीं।

वो डरा हुआ, सहमा हुआ, छुपा है मेरे मन में कहीं
कई बरस हुए उससे मिले, अब वो लगता है पराया।
पर आज मैं अपने अंतर्मन को  मिलवाऊँगी खुद से यहीं,
एक बार जो मिले, फिर होना अलग, वो ही तो है मेरा साया।

अब जब वो मेरे पास है, तब मुझको ये आभास है,
मिल कर आई मैं अपने स्वयं से, अब कहाँ मुझे कोई प्यास है।

Monday, August 25, 2014

Raaste ka Pathar

ओ दुनिया, दुनिया वालों, ज़रा इधर भी देखो, मैं भी हूँ,
इस दहकते संसार में, इस जलते संग्राम में, मैं भी हूँ।

मुझे देख कर भी अनदेखा करके, तुम सब निकल जाते हो,
इस तेज़ रफ़्तार दुनिया के तुम आज़ाद परिंदे हो,
धुप सर्दी  बारिशों में रास्ते की धुल खाता
मैं जहाँ खड़ा हूँ, मैं सदा  वहीँ था, अब भी वहीँ पैर हूँ।

तुम सोचते हो आज क्या महफ़िल करेंगे,
कुछ और नहीं तो दीवारों के रंग बदल दूँ
पैसे के ढेर पर बैठ कर सोचना,
कल क्या क्या मुझे नया मिलेगा

मैं सोचता हूँ, क्या आज मुझे रोटी मिलेगी, या पानी मिलेगा
या  मुझे सर छुपाने, छप्पर मिलेगा
अपने नंगे पैरों के ज़ख्मों को रोज़
सोचता हूँ क्या आज मुझे कफ़न ही मिलेगा।

ओ दुनिया बनाने वाले,  तेरी इस दुनिया में मैंने क्या पाया है ,
सुख की चांदनी उनके लिए और दुःख की राते मेरे लिए
क्यों मुझसे नाराज़ है तू, क्यों मुझसे  रूठा है
अपनी आँखें खोल ज़रा और निचे देख संसार में
रास्ते का पत्थर बना , मैं भी हूँ , मैं भी हूँ।